Wednesday, May 17, 2017

BHADRACHALAM - दक्षिण की अयोध्या




- भद्राचलम का राम मंदिर सूर्यपुत्र

भारत की संस्कृति राममय है। यहां रोम-रोम में राम बसे हैं। भारत में अनेक प्राचीन स्थल हैं जो श्रीराम के जीवन से निकटता से जुड़े हैं। प्रभु राम की जन्मभूमि है अयोध्या तो सरयू का तट केवट की कहानी से जुड़ा है। इसी तरह राम कथा से अभिन्न रूप में जुड़ा है आंध्र प्रदेश के खम्मम जिले में भद्राचलम। इस पुण्य क्षेत्र को "दक्षिण की अयोध्या" माना जाता है और यह अगणित भक्तों का श्रद्धा केन्द्र है। यह वही स्थान है जहां राम ने पर्णकुटी बनाकर वनवास का लंबा समय व्यतीत किया था। भद्राचलम से कुछ ही दूरी पर स्थित पर्णशाला में भगवान अपनी पर्णकुटी बनाकर रहे थे। यहीं कुछ ऐसे शिला खंड हैं जिन पर, यह माना जाता है कि, सीता जी ने वनवास के दौरान वस्त्र सुखाए थे। ऐसा भी जन विश्वास है कि सीता जी का अपहरण यहीं से हुआ था।



भद्राचलम की एक और विशेषता यह है कि यह वनवासी बहुल क्षेत्र है और राम जी वनवासियों के भी उतने ही पूज्य हैं। वनवासी भी परंपरागत रूप से भद्राचलम को अपना आस्था केन्द्र मानते हैं और रामनवमी को भारी संख्या में यहां भगवान राम के सुप्रसिद्ध मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। वनवासी बहुल क्षेत्र होने के कारण ईसाई मिशनरी यहां मतांतरण षड्यंत्र चलाने की कोशिश में वर्षों से जुटे हैं पर भद्राचलम की महिमा ही ऐसी है कि इनके लाख प्रयासों के बाद भी यहां मतांतरण जोर नहीं पकड़ पाया। स्थानीय वनवासी ईसाई षडंत्रों का प्रखर विरोध भी करते रहे हैं। पांचजन्य के पिछले अंक में इसी मंदिर की अतिथिशाला में ईसाई गतिविधियों की रपट प्रकाशित की गई थी। मिशनरियों का वह प्रयास भी स्थानीय हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकत्र्ताओं ने असफल कर दिया।

इस मंदिर के आविर्भाव की कथा भी वनवासियों से जुड़ी हुई है-कथा ऐसी है कि एक राम भक्त वनवासी महिला पोकला दम्मक्का भद्रिरेड्डीपालेम ग्राम में रहा करती थी। इस वृद्धा ने राम नामक एक लड़के को गोद लेकर उसका पालन पोषण किया। एक दिन राम वन में गया और वापस नहीं लौटा। पुत्र को खोजते-खोजते दम्मक्का जंगल में पहुंच गई और "राम-राम" पुकारते हुए भटकने लगी।

तभी उसे एक गुफा के अंदर से आवाज आई-"मां, मैं यहां हूं"। खोजने पर वहां सीता, राम, लक्ष्मण की प्रतिमाएं मिलीं। उन्हें देखकर दम्मक्का भक्ति भाव से सराबोर हो गई। इतने में उसने अपने पुत्र को भी सामने खड़ा पाया।

बस, भक्त दम्मक्का ने उसी जगह पर देव प्रतिमाओं की स्थापना का संकल्प लिया और बांस की छत बनाकर एक अस्थाई मंदिर बनाया। धीरे-धीरे स्थानीय वनवासी समुदाय भद्रगिरि या भद्राचलम नामक उस पहाड़ी पर श्रीराम जी की पूजा करने लगे। आगे चलकर भगवान ने भद्राचलम को वनवासियों-नगरवासियों के मिलन का हेतु और सेतु बना दिया।

गोलकोंडा (आज का हैदराबाद) का कुतुबशाही नवाब अबुल हसन एक तानाशाह था मगर इसकी ओर से भद्राचलम के तहसीलदार के नाते नियुक्त कंचली गोपन्ना ने कालांतर में उस बांस के मंदिर के स्थान पर भव्य मंदिर बनाकर उस क्षेत्र को धार्मिक जागरण का महत्वपूर्ण केन्द्र बनाने का प्रयास किया। कर वसूली से प्राप्त धन से उसने एक विशाल परकोटे की भीतर भव्य राम मंदिर बनाया, जो आज भी आस्था के अपूर्व केन्द्र के रूप में स्थित है।

गोपन्ना ने भक्ति भाव से सीता जी, श्रीराम जी व लक्ष्मण जी के लिए कटिबंध, कंठमाला (तेलुगू में इसे पच्चला पतकम् कहा जाता है), माला (चिंताकु पतकम्) एवं मुकुट मणि (कलिकि तुराई) भी बनवा कर अर्पित की। उन्होंने राम जी की भक्ति में कई भजन लिखे, इसी कारण लोग उन्हें भक्त रामदास कहने लगे। रामदास विदेशी अक्रमण के खिलाफ देश में भक्ति आंदोलन से जुड़े हुए था। भक्त कबीर रामदास के आध्यात्मिक गुरु थे और उन्होंने रामदास को रामानंदी संप्रदाय की दीक्षा दी थी। रामदास के कीर्तन गांव-गांव, घर-घर में गाए जाते थे और तानाशाही राज के विरोध में खड़े होने की प्रेरणा देते थे। आज भी हरिदास नामक घुमंतु प्रजाति भक्त रामदास के कीर्तन गाते हुए राम भक्ति का प्रचार करती दिखाई देती है। लेकिन रामदास का यह धर्म जागरण कार्य तानाशाह को नहीं भाया और उन्होंने रामदास को गोलकोंडा किले में कैद कर दिया। आज भी हैदराबाद स्थित इस किले में वह काल कोठरी देखने को मिलती है जहां भक्त रामदास को कैदी की तरह रखा गया था।

ऐसा कहा जाता है कि राम व लक्ष्मण नवाब के सामने साधारण वेष में प्रकट हुए थे और रामदास की मुक्ति के बदले उसे सोने की राम मुद्राएं दी थीं। मुद्राएं पाकर नवाब ने रामदास को ससम्मान कैद से मुक्त कर दिया। इतना ही नहीं, इसके बाद प्रति वर्ष रामनवमी के दिन नवाब भी सीता माता व राम जी के विवाहोत्सव (कल्याणम्) के अवसर पर मोती और नये वस्त्र भेंट करने लगा। यह प्रथा पिछले 400 वर्षों से निर्बाध जारी है। आज भी राज्य सरकार की ओर से मुख्यमंत्री मोती भेंट करते हैं। इस तरह यह मंदिर हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द का भी प्रतीक है। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का विरोध करने वाले कट्टरवादी तत्व भद्राचलम के इस सौहार्द से सबक लें, राम जी अवश्य कृपा करेंगे।

1960 के दशक में अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस के सौजन्य से भद्राचलम में श्रीरामदास मंडपम का निर्माण किया गया था। लेकिन आज स्थितियां सेकुलर तत्वों के कारण बिगड़ रही हैं। ईसाई मिशनरियों के निरंतर कुप्रयासों से इस ऐतिहासिक आस्था केन्द्र पर खतरा बढ़ गया है। सजग श्रद्धालुजन और सरकार को मिलकर इन षडंत्रों को नाकाम करना ही होगा।


साभार: पाञ्चजन्य