Thursday, November 20, 2014

MA CHANDRABANI MANDIR - सिद्धपीठ मां चन्द्रबदनी मंदिर।








देवप्रयाग। टिहरी मार्ग पर चन्द्रकूट पर्वत पर स्थित लगभग आठ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है सिद्धपीठ मां चन्द्रबदनी मंदिर। देवप्रयाग से 33 किमी की दूरी पर यह सिद्धपीठ स्थित है। धार्मिक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक दृष्टि में चन्द्रबदनी उत्तराखंड की शक्तिपीठों में महत्वपूर्ण है।

स्कंदपुराण, देवी भागवत व महाभारत में इस सिद्धपीठ का विस्तार से वर्णन हुआ है। प्राचीन ग्रन्थों में भुवनेश्वरी सिद्धपीठ के नाम से इसका उल्लेख है। पौराणिक आख्यान के अनुसार भगवान शंकर का सती की मृत देह के प्रति मोह समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने सती के पार्थिव काया को सुदर्शन चक्र से कई भागों में बांट दिया था। सती का कटीभाग चन्द्रकूट पर्वत पर गिरने से यहां पर भुवनेश्वरी सिद्धपीठ स्थापित हुई। कालांतर में भगवान शंकर इस स्थल पर आए। सती के विरह से व्याकुल भगवान शिव यहां सती का स्मरण कर सुदबुद खो बैठे। इस पर महामाया सती यहां अपने चन्द्र के समान शीतल मुख के साथ प्रकट हुई। इसको देखकर भगवान शंकर का शोक मोह दूर हो गया और प्रसन्नचित हो उठे। देव-ग‌र्न्धवों ने महाशक्ति के इस रूप का दर्शन कर स्तुति की। इसके बाद से यह तीर्थ चन्द्रबदनी के नाम से विख्यात हुआ। महाभारत कीएक कथा के अनुसार चन्द्रकूट पर्वत पर अश्वत्थामा को फेंका गया था। चिरंजीव अश्वत्थामा अभी भी हिमालय में विचरते हैं यह माना जाता है। गर्भगृह में भूमि पर भुवनेश्वरी यंत्र स्थापित है। जबकि ऊपर की ओरस्थित यंत्र सदा ढका रहता है। पुजार गांव निवासीब्राहमण ही मंदिर में पूजा अर्चना करते आ रहे हैं।

मंदिर में माँ चन्द्रबदनी की मूर्ति न होकर श्रीयंत्र ही अवस्थित है। किवंदती है कि सती का बदन भाग यहाँ पर गिरने से देवी की मूर्ति के कोई दर्शन नहीं कर सकता है। पुजारी लोग आँखों पर पट्टी बाँध कर माँ चन्द्रबदनी को स्नान कराते हैं। जनश्रुति है कि कभी किसी पुजारी ने अज्ञानतावश अकेले में मूर्ति देखने की चेष्टा की थी, तो पुजारी अंधा हो गया था।
चंद्रबदनी मंदिर में माता के दर्शन करने को हमेशा श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी रहती है। सिद्धपीठ चन्द्रबदनी में जो भी श्रद्धालु भक्तिभाव से अपनी मनौती माँगने जाता है, माँ जगदम्बे उसकी मनौती पूर्ण करती है। मनौती पूर्ण होने पर श्रद्धालु जन कन्दमूल, फल, अगरबत्ती, धूपबत्ती, चुन्नी, चाँदी के छत्तर चढ़ावा के रूप में समर्पित करते हैं। वास्तव में चन्द्रबदनी मंदिर में एक अलौकिक आत्मशान्ति मिलती है। इसी आत्म शान्ति को तलाशने कई विदेशी, स्वदेशी श्रद्धालुजन माँ के दर्शनार्थ आते हैं। अब मंदिर के निकट तक मोटर मार्ग उपलब्ध है। प्राकृतिक सौन्दर्य से लबालब चन्द्रकूट पर्वत पर अवस्थित माँ चन्द्रबदनी भक्तों के दर्शनार्थ हरपल प्रतीक्षारत है।

साभार: देवालय परिचय - Devalaya Parichay, फेसबुक 

Tuesday, November 18, 2014

NAINA DEVI MANDIR - NAINITAL - मां नैना देवी मंदिर-नैनीताल उत्तराखंड









प्रकृति के वरदान से विभूषित देवभूमि उत्तराखंड की हृदयस्थली है नैनीताल शहर और नैनीताल की हृदयस्थली है नैनी झील। इसी नैनी झील के उत्तरी सिरे पर स्थित है मां नैना देवी का मंदिर। स्थानीय विश्वास के अनुसार यह मंदिर शक्तिपीठ है। मान्यता है कि यहां सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इसका नाम नैना देवी प्रसिद्ध हुआ। मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही बायीं तरफ एक विशाल पीपल का वृक्ष है और दायीं तरफ हनुमान जी की प्रतिमा। मंदिर के मुख्य परिसर में प्रवेश करने के बाद शेरों की दो प्रतिमाएं हैं। मुख्य परिसर में तीन देवी-देवता विराजमान हैं। बीच में मुख्य देवी नैना देवी हैं, जिन्हें दो नेत्रों द्वारा दर्शाया गया है। उनकी बायीं तरफ मां काली हैं और दायीं तरफ भगवान गणेश।

नैना देवी की प्रतिमा वाले भवन के ठीक सामने काले पत्थर का एक बहुत ही सुंदर शिवलिंग भी स्थापित है। कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में हुआ था, लेकिन 1880 में हुए एक भूस्खलन की वजह से यह मंदिर नष्ट हो गया। बाद में 1883 में इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया। नैना देवी को नैनीताल शहर की कुल देवी कहा जाता है और इस शहर का नामकरण उन्हीं के नाम पर किया गया है। नैनी झील को ‘लघु मानसरोवर’ भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि अत्रि ऋषि, पुलस्त्य ऋषि और पुलह ऋषि ने मानसरोवर का जल लाकर इस झील का निर्माण किया था, इसलिए इसका एक नाम ‘त्रिऋषि सरोवर’ भी है। यूं तो नैना देवी मंदिर में वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि, सावन मेला और चैत्र मेला के दौरान यहां बाकी समय की अपेक्षा ज्यादा श्रद्धालु आते हैं। मंदिर से आम के आकार वाली नैनी झील का दृश्य अत्यंत मनोरम दिखाई देता है। मंदिर दर्शन के लिए सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है।

साभार : देवालय परिचय - Devalaya Parichay, फेसबुक.