Wednesday, June 12, 2013

सिन्हाचालम देवस्थानम - SINHACHALAM DEVSTHANAM







दक्षिण भारत में विष्णु भगवान को समर्पित अनेक मंदिरों में से एक महत्वपूर्ण मंदिर है- सिंहाचलम देवस्थान। यह मंदिर आंध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम शहर से लगभग 16 किमी. दूर एक 800 फुट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। सिंहाचलम का अर्थ है-सिंह की पहाड़ी। इसलिए इस मंदिर को सिंहाचलम कहा जाता है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यह भगवान विष्णु के एक नहीं दो अवतारों को समर्पित है। वराह अवतार और नरसिंह अवतार।

प्रचलित कथा

इस संदर्भ में एक पौराणिक कथा के अनुसार मंदिर की स्थापना भक्त प्रह्लाद द्वारा की गई थी। हिरण्याक्ष तथा हिरण्यकश्यप राक्षसों के अत्याचार से जगत को मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से भगवान विष्णु इन्हीं दो अवतारों में प्रकट हुए थे। पहले वराह अवतार लेकर उन्होंने हिरण्याक्ष का संहार किया उसके बाद जब भक्त प्रह्लाद पर हिरण्यकश्यप के अत्याचार बढ़ने लगे तो उन्होंने नरसिंह रूप में अवतार लिया क्योंकि हिरण्यकश्यप ने यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि न मनुष्य उसे मार सके न ही पशु, न वह दिन में मरे न रात को, न घर में भीतर उसे कोई मारे न घर के बाहर, न किसी अस्त्र से मरे न किसी शस्त्र से। तो भगवान विष्णु ने आधा नर और आधा पशु रूप में अवतार लेकर संध्याकाल में उसके महल की दहलीज पर उसका वध अपने तीक्ष्ण नखों द्वारा किया था। बाद में प्रह्लाद की प्रार्थना पर भगवान ने इसी पहाड़ी पर अपने दोनों अवतारों के रूप में उन्हे दर्शन दिए थे। भगवान के उन्हीं रूपों को ध्यान में रख प्रह्लाद ने यहां मंदिर का निर्माण कराया तथा उसमें वराह-नरसिंह रूप की प्रतिमा की स्थापना की।

मंदिर की पुन:स्थापना

कालांतर में सिंहाचलम पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर का महत्व घटने लगा। बहुत समय बाद राजा पुरुरवा अपनीप्रेयसी उर्वशी के साथ मार्ग में इस पहाड़ी पर रुके तो उर्वशी ने मंदिर में भगवान के इस अनोखे रूप के दर्शन किए। कहते है कि वह अक्षय तृतीया का दिन था और उसी समय आकाशवाणी हुई कि भगवान के तेज को शांत करने के लिए चंदन का लेप किया जाए। तब पुरुरवा ने चंदन के लेप से प्रतिमा को ढक दिया। तभी से आज तक प्रतिमा पर नित्य चंदन का आलेपन किया जाता है। पुरुरवा द्वारा इस मंदिर की पुन:स्थापना भी की गई।

वास्तु शिल्प का अद्भुत नमूना

वर्तमान मंदिर मूल रूप में 11वीं शताब्दी में बना था और 17वीं शताब्दी तक इसके वास्तु शिल्प में परिवर्तन भी हुआ। मंदिर में स्थित स्तंभ पर 11वीं से 17वीं शताब्दी तक के शिला लेख इस बात का प्रमाण हैं। मंदिर कावास्तुशिल्प दक्षिण भारतीय तथा द्रविड़ियन नागर शैली का मिला-जुला रूप है। इसका गोपुरम अत्यंत भव्य एवंप्रभावशाली है। गर्भगृह में वराह नरसिंह की लगभग ढाई फुट ऊंची प्रतिमा है, जिसमें भगवान त्रिभंगी मुद्रा में विराजमान है। गर्भगृह के सामने मंदिर का मुखमंडप है। यहां स्थित एक स्तंभ फूल, रेशमी कपड़े और चांदी से सजा है। नि:संतान दंपती इस स्तंभ के समक्ष संतान प्राप्ति हेतु प्रार्थना करते है। मंदिर के उलर में कल्याण मंडप है। जिसमें 96 नक्काशीयुक्त सुंदर स्तंभ है। मंदिर में भगवान के अन्य अवतार जैसे मत्स्य अवतार व धनवंतरी अवतार आदि की प्रतिमा भी है।

प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया पर यहां चंदना यात्रा उत्सव होता है। उस दिन भगवान के वास्तविक दर्शन होते है क्योंकि वर्ष में उसी दिन प्रतिमा पर से चंदन का लेप हटाया जाता है। चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी पर यहां पांच दिन का कल्याणोत्सव भी एक महत्वपूर्ण पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसमें भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी के विवाह की परंपरा है। सिंहाचलम दक्षिण भारत का एक समृद्ध मंदिर है।

साभार : जागरण सखी

Friday, June 7, 2013

मार्तण्ड मंदिर - MARTAND MANDIR - KASHMIR







कश्मीर में अशांति के दो दशकों में जिन मंदिरों को सबसे ज्यादा उपेक्षा झेलनी पड़ी, उनमें से एक है अनंतनाग जिले में म˜न स्थित मार्तण्ड मंदिर। यह उत्तर भारत में सूर्य के गिने-चुने मंदिरों में से प्रमुखतम माना जाता है।

कहा जाता है कि म˜न भी मार्तण्ड का ही अपभ्रंश है। सूर्य मार्तण्ड ऋषि कश्यप व अदिति के तेरहवें पुत्र माने जाते हैं। हिंदू मिथकों में कश्मीर का जिक्र भी कई जगहों पर आता है। मिथकों के अनुसार, 2600 ई.पू. में पांडववंशीय रामदेव जी ने यहां मंदिर बनवाया। उसके बाद 742 ई. में राजा ललितादित्य ने मार्तण्ड इलाके में मंदिर बनवाए। उसके बाद नौवीं सदी के अंत में राजा अवंतीवर्मन और दसवीं सदी में राजा कलशक ने मंदिर का विकास कराया। हर काल में इस मंदिर का माहात्म्य बना रहा।

बताया यह भी जाता है कि मुगल शासकों- शाहजहां से लेकर औरंगजेब तक के काल में भी इस इलाके का काफी विकास हुआ। मंदिर का जिक्र कल्हण की राजतरंगिणी में भी आता है। चूंकि यह मंदिर पहलगाम के रास्ते के नजदीक है, इसलिए इसकी मान्यता अमरनाथ यात्रा से भी जुड़ी है। यहां सरोवर में मछलियों को दाना खिलाए बगैर यह यात्रा पूरी नहीं मानी जाती।

साभार : http://sanatan.apnahindustan.com, सनातन धर्म 

Tuesday, June 4, 2013

बाबा अमरनाथ - BABA AMARNATH JI

पवित्र शिवलिंगम 

पवित्र कन्दरा 


कश्मीर की खूबसूरत लिद्दर घाटी के सुदूर किनारे पर एक संकरी खाई में बसे हैं बाबा अमरनाथ। गुफा में बर्फ के लिंग के रूप में स्थित महादेव शिव का यह स्थान समुद्र तल से 3888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बर्फ का यह शिवलिंग पूरी तरह प्राकृतिक है और कहा जाता है कि चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ ही यह शिवलिंग भी घटता-बढ़ता है। मुख्य लिंग के अगल-बगल ही बर्फ के दो और शिवलिंग हैं जो देवी पार्वती और गणेश के प्रतीक हैं। इस गुफा के धार्मिक-पौराणिक इतिहास के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं।

साल के ज्यादातर समय यह जगह बर्फ से घिरी रहती है और लिहाजा यहां पहुंचना लगभग नामुमकिन सा होता है। गर्मियों में बर्फ के पिघलने के बाद यहां जाने का रास्ता खुलता है। हर साल ज्येष्ठ-श्रावण के महीनों में यहां यात्रा होती है। हर साल यात्रा की अवधि भी कम ज्यादा होती रहती है। यात्रा की अवधि, इंतजामों और यात्रियों की मौत को लेकर पिछले कई सालों से यात्रा चर्चा में रही है। वैष्णो देवी की ही तरह अमरनाथ के लिए भी अलग से श्राइन बोर्ड बना हुआ है जो यात्रा के सारे इंतजाम देखता है। इस साल यात्रा 28 जून से शुरू होगी और कुल 55 दिन तक चलेगी। रक्षाबंधन के दिन 21 अगस्त को छड़ी मुबारक के अमरनाथ पहुंचते ही यात्रा संपन्न हो जाएगी। पिछले कुछ सालों में यात्रियों की मौत का मसला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने के बाद इस बार किसी भी व्यक्ति का हेल्थ सर्टीफिकेट के बगैर यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं किया जाएगा। यात्रा के लिए हर व्यक्ति को रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है और इस साल के लिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया 18 मार्च से पहले ही शुरू हो चुकी है। रजिस्ट्रेशन की एक तय प्रक्रिया है। साथ ही हर रूट पर किसी भी दिन जाने वाले यात्रियों की भी एक तय संख्या है। रजिस्ट्रेशन का जिम्मा देशभर में कई बैंकों के पास है और उनके पास हर रूट व हर तारीख का एक कोटा है। इसके अलावा इस साल यह भी तय किया गया है कि 13 वर्ष से कम और 75 वर्ष से ज्यादा उम्र के किसी भी व्यक्ति को इस साल यात्रा पर जाने की इजाजत नहीं होगी। इसी तरह छह हफ्ते या उससे ज्यादा के गर्भ वाली किसी महिला को भी यात्रा पर नहीं जाने दिया जाएगा।

कैसे जाएं

अमरनाथ यात्रा जाने के दो रास्ते हैं- पहला, पहलगाम से होकर और दूसरा सोनमर्ग से होकर। दोनों ही रास्तों के लिए पहले ट्रेन, बस अथवा हवाई जहाज से जम्मू या श्रीनगर पहुंचना होता है। उसके बाद आप पहलगाम या सोनमर्ग जा सकते हैं। उसके बाद अमरनाथ गुफा तक का आगे का सफर पैदल, खच्चर पर या पालकी में किया जा सकता है। पहलगाम का रास्ता बेस कैंप चंदनवाड़ी, पिस्सू टॉप, शेषनाग व पंजतरणी होते हुए गुफा तकपहुंचता है। जबकि सोनमर्ग का रास्ता बालटाल से सीधा गुफा तक ले जाता है। पहलगाम वाले रास्ते में आने-जाने में पांच दिन का वक्त लग जाता है। वहीं बालटाल से गुफा तक एक दिन में पहुंचा जा सकता है। 14 किलोमीटर का यह रास्ता खड़ी चढ़ाई वाला है। फिट लोग इस रास्ते पर बालटाल से जल्दी चढ़ाई शुरू करके उसी दिन दर्शन करके नीचे लौट आते हैं। इस रास्ते पर बालटाल और पहलगाम वाले रास्ते पर चंदनवाड़ी से आगे किसी भी व्यक्ति को यात्रा परमिट और स्वास्थ्य प्रमाणपत्र के बगैर जाने की इजाजत नहीं है। वहीं यात्रा के लिए हेलीकॉप्टर की सुविधा भी है। यात्रा के दौरान बालटाल और पहलगाम, दोनों ही जगहों से पंजतरणी तक होलीकॉप्टर की उड़ानें उपलब्ध रहेंगी। बालटाल से पंजतरणी तक का इकतरफा किराया 1500 रुपये और पहलगाम से पंजतरणी तक का इकतरफा किराया 2400 रुपये तय किया गया है। हेलीकॉप्टर के टिकट के लिए ऑनलाइन बुकिंग कराई जा सकती है। जो हेलीकॉप्टर से अमरनाथ जाना चाहते हैं, उन्हें अलग से रजिस्ट्रेशन कराके यात्रा परमिट भी लेने की जरूरत नहीं है। हेलीकॉप्टर का टिकट उसके लिए पर्याप्त है।


पहलगाम और सोनमर्ग, दोनों ही स्थानों पर रुकने के लिए कई होटल व रिजॉर्ट हैं। वहीं, आगे यात्रा मार्ग पर यात्रियों के लिए कैंप व खाने-पीने के पर्याप्त इंतजाम होते हैं। मणिगाम, बालताल व पंजतरणी में डेढ़ सौ से लेकर पांच सौ रुपये तक में रुकने की सुविधा मिल जाती है। यात्रा के दौरान खच्चरों व पालकियों के रेट भी तय हैं। आपको बस मौसम व थकावट से जूझने के लिए उत्साह, जीवट, शारीरिक क्षमता और जरूरी कपड़े-दवाइयां चाहिए होते हैं।

साभार : दैनिक जागरण