Wednesday, May 9, 2012

गोकर्ण


गोकर्ण (कन्नड़ಗೋಕರ್ಣदक्षिण भारत के कर्नाटक में मैंगलोरके पास स्थित एक ग्राम है। इस स्थान से हिन्दू धर्म के लोगों की गहरी आस्थाएं जुड़ी हैं, साथ ही इस धार्मिक जगह के खूबसूरत बीचों के आकर्षण से भी लोग खिंचे चले आते हैं। अपने ऐतिहासिक मंदिरों के साथ सागर तटों के लिए भी यह स्थान मशहूर है। यहां माना जाता है कि शिवजी का जन्म गाय के कान से हुआ और इसी वजह से इसे गोकर्ण कहा जाता है। साथ ही एक धारण के अनुसार कि गंगावली और अघनाशिनी नदियों के संगम पर बसे इस गांव का आकार भी एक कान जैसा ही है। इस कारण से लोगों की यहां काफी आस्था है और यह एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहां देखने लायक कई मंदिर हैं। वैसे, यहां के खूबसूरत बीच ढेरों पर्यटकों को लुभाते हैं। कुल मिलाकर यहां के बेहतरीन प्राकृतिक माहौल में धामिर्क आस्थाओं को गहराई से अनुभव किया जा सकता है।


चित्र:OmBeach Topview.jpg
ओम बीच

[संपादित करें]धार्मिक स्थान

गोकर्ण का महाबलेश्वर मंदिर यहां का सबसे पुराना मंदिर है। भगवान शिव को समर्पित पश्चिमी घाट पर बसा यह मंदिर 1500 साल पुराना है और कर्नाटक के सात मुक्तिस्थलों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि यहां स्थापित छह फीट ऊंचे शिवलिंग के दर्शन 40 साल में सिर्फ एक बार होते हैं। अपनी इस धार्मिक मान्यता के चलते इस जगह को 'दक्षिण का काशी' के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने यह शिवलिंग रावण को उसके साम्राज्य की रक्षा करने के लिए दिया था, लेकिन भगवान गणेश और वरुण देवता ने कुछ चाल चलकर शिवलिंग यहां स्थापित करवा दिया। तमाम कोशिशें करने के बावजूद रावण इसे निकाल नहीं पाया। तभी से यहां भगवान शिव का वास माना जाता है।
गोकर्ण का एक और महत्त्वपूर्ण मंदिर महागणपति मंदिर है, जो भगवान गणेश को समर्पित है। गणेश जी ने यहां शिवलिंग की स्थापना करवाई थी, इसलिए यह उनके नाम पर इस मंदिर का निर्माण करवाया गया।
यहां के दूसरे अहम मंदिर हैं : उमा माहेश्वरी मंदिर, भद्रकाली मंदिर, वरदराज मंदिर, ताम्रगौरी मंदिर और सनमुख मंदिर। इनके अलावा, सेजेश्वर, गुणवंतेश्वर, मुरुदेश्वर और धारेश्वर मंदिर भी दर्शनीय हैं। बताते चलें कि महाबलेश्वर और इन चारों मंदिरों को पचं महाक्षेत्र के नाम से जाना जाता है।

File:Mahabaleshwara Temple.JPG

महाबलेश्वर मन्दिर

[संपादित करें]महाबलेश्वर मन्दिर और उसकी कथा

महाबलेश्वर मंदिर गोकर्ण का सबसे पुराना मंदिर है। भगवान शिव को समर्पित पश्चिमी घाट पर बसा यह मंदिर लगभग 1500 साल पुराना है और इसे कर्नाटक के सात मुक्तिस्थलों में से एक माना जाता है। गोकर्ण में भगवान शंकर का आत्मतत्व लिंग है। शास्त्रों में गोकर्ण तीर्थ की बड़ी महिमा बताई गई है। यहां के विग्रह को महाबलेश्वर महादेव कहते हैं। यह मंदिर बड़ा ही सुंदर है। मान्यताओं के मुताबिक, यहां स्थापित छह फीट ऊंचे शिवलिंग के दर्शन 40 साल में सिर्फ एक बार होते है। इस धार्मिक मान्यता के चलते इस स्थल को ‘दक्षिण का काशी‘ के नाम से भी जाना जाता है।
कहा जाता है कि भगवान शिव ने रावण को उसके साम्राज्य की रक्षा करने के लिए शिवलिंग दिया था, लेकिन भगवान गणेश और वरुण देवता ने कुछ चालें चलकर शिवलिंग यहां स्थापित करवा दिया। तमाम कोशिशें करने के बावजूद रावण इसे निकाल नहीं पाया। तभी से यहां भगवान शिव का वास माना जाता है। यहां मंदिर के भीतर पीठ स्थान पर अरघे के अंदर आत्मतत्व शिवलिंग के मस्तक का अग्रभाग दृष्टि में आता है और उसी की पूजा होती है। यह मूर्ति मृगश्रृंग के समान है। कहा जाता है कि पाताल में तपस्या करते हुए भगवान रुद्र गोरूप धारिणी पृथ्वी के कर्णरन्ध्र से यहां प्रकट हुए, इसी से इस क्षेत्र का नाम गोकर्ण पड़ा। महाबलेश्वर मंदिर के पास सिद्ध गणपति की मूर्ति है, जिसके मस्तक पर रावण द्वारा आघात करने का चिन्ह है। गणेश जी ने यहां शिवलिंग की स्थापना करवाई थी, इसलिए उनके नाम पर इस मंदिर का निर्माण करवाया गया। इनका दर्शन करने के बाद ही आत्मतत्व शिवलिंग के दर्शन पूजन की विधि है।
मंदिर स्थापना संबंधी प्रचलित कथा- भगवान शंकर एक बार मृग स्वरूप बनाकर कैलाश से अन्तर्हित हो गये थे। ढूंढते हुए देवता उस मृग के पास पहुंचे। भगवान विष्णु, ब्रम्हाजी तथा इन्द्र ने मृग के सींग पकड़े। मृग तो अदृश्य हो गया, किंतु तीनों देवताओं के हाथ में सींग के तीन टुकड़े रह गये। भगवान विष्णु तथा ब्रम्हाजी के हाथ के टुकड़े- सींग का मूलभाग तथा मध्यभाग गोला- गोकर्णनाथ तथा श्रृंगेश्वर में स्थापित हुए। इन्द्र के हाथ में सींग का अग्रभाग था। इन्द्र ने उसे स्वर्ग में स्थापित किया। रावण के पुत्र मेघनाथ ने जब इन्द्र पर विजय प्राप्त की, तब रावण स्वर्ग से वह लिंग मूर्ति लेकर लंका की ओर चला।
कुछ विद्वानों का मत है कि रावण की माता बालू का पार्थिव लिंग बनाकर पूजन करती थी। समुद्र किनारे पूजन करते समय उसका बालू का लिंग समुद्र की लहरों से बह गया। इससे वह दु:खी हो गयी। माता को संतुष्ट करने के लिए रावण कैलाश गया। वहां तपस्या करके उसने भगवान शंकर से आत्मतत्व लिंग को प्राप्त किया। रावण जब गोकर्ण क्षेत्र में पहुंचा, तब शाम होने को आ गयी। रावण के पास आत्मतत्व लिंग होने से देवता चिंतित थे। उनकी माया से रावण को शौचादि की तीव्र आवश्यकता महसूस हुई। देवताओं की प्रार्थना से गणेशजी वहां रावण के पास ब्रम्हचारी के रूप में उपस्थित हुए। रावण ने उन ब्रम्हचारी के हाथ में वह लिंग विग्रह दे दिया और स्वयं नित्यकर्म में लग गया। इधर मूर्ति भारी हो गयी। ब्रम्हचारी बने गणेशजी ने तीन बार नाम लेकर रावण को पुकारा और उसके न आने पर मूर्ति पृथ्वी पर रख दी।
रावण अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करके शुद्ध होकर आया। वह बहुत परिश्रम करने पर भी मूर्ति को उठा नहीं सका। खीझकर उसने गणेशजी के मस्तक पर प्रहार किया और निराश होकर लंका चला गया। रावण के प्रहार से व्यथित गणेशजी वहां से चालीस पद जाकर खड़े हो गये। भगवान शंकर ने प्रकट होकर उन्हें आश्वासन और वरदान दिया कि तुम्हारा दर्शन किये बिना जो मेरा दर्शन पूजन करेगा, उसे उसका पुण्यफल नहीं प्राप्त होगा।
गोकर्ण के दूसरे अहम मंदिर हैं- उमा माहेश्वरी मंदिर, भद्रकाली मंदिर, वरदराज मंदिर, ताम्रगौरी मंदिर और सनमुख मंदिर। इनके अलावा सेजेश्वर, गुणवंतेश्वर, मुरुदेश्वर और धारेश्वर मंदिर भी दर्शनीय हैं।

Gokarna Temple in Karnataka1 Gokarna, Famous Tourism in Karnataka India



प्राकृतिक आकर्षण

पश्चिमी घाटों और अरब सागर के बीच बसा गोकर्ण जहां अपने मंदिरों के चलते धार्मिक आस्थाओं का केन्द्र है, तो यहां के बीच भी कुछ कम लुभावने नहीं हैं।
ओम बीच
इस बीच का आकार कुदरती तौर पर ही ओम जैसा है, इसलिए इसे ओम बीच के नाम से जाना जाता है।
कडले बीच
खजूर के पेड़ों से घिरे इस खूबसूरत बीच पर आप सूरज के डूबने व उगने, दोनों का ही आनंद ले सकते हैं।
हाल्फ मून और पैराडाइज बीच
ये दोनों ही बीच थोड़ी दूरी पर हैं और यहां आप नाव से जा सकते हैं। अगर आप शांतिप्रिय हैं, तो ये बीच आपको बेहद पसंद आएंगे।
साभार : विकिपीडिया, गूगल 

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