Tuesday, May 29, 2012

मान्यता है कि आपदा से बचाते हैं विश्वकर्मा



kalpeshwar-temple
पंच केदार, पंच बदरी की भूमि कल्प क्षेत्र उर्गम घाटी में 55 वर्ष बाद विश्वकर्मा जागर का आयोजन सम्पन्न हो गया। भगवान विष्णु के 108 नामों में एक नाम विश्वकर्मा भी है। देवताओं के शिल्पी के रूप में विश्वकर्मा को माना जाता है। विश्वकर्मा के मंदिर पैनखंडा में कोशा गाँव, पल्ला गाँव, थैंग, चाईं गाँव आदि अनेक स्थानों पर हैं। किन्तु उर्गम घाटी का विश्वकर्मा मंदिर विशिष्ट है। 300 साल पूर्व यहाँ 365 मंदिरों का उल्लेख मिलता है, किन्तु कल्प क्षेत्र में भूस्खलन के कारण अधिकांश मंदिर टूट गये। इन मंदिरों का निर्माण विश्वकर्मा द्वारा किया गया माना जाता है। उर्गम घाटी में ध्यान बदरी मंदिर नागर शैली में निर्मित है, जिसकी शिलायें 6 फीट लम्बी हैं। इसी के समीप विश्वनाथ मंदिर ऊँचाताप वाला भी कत्यूरी शासन काल में छठी से 11वीं सदी के बीच निर्मित है। इसी तरह श्री कल्पेश्वर धाम भी अति प्राचीन स्थान है। कल्प क्षेत्र उर्गम घाटी के देवग्राम में हर वर्ष चैत्रमास को नौ दिवसीय शिव पार्वती मेला होता है। केदार खंड के 52-56 अध्याय तक कल्पेश्वर का विस्तृत विवरण है। जिसमें शिव स्वयं पार्वती से कहते हैं कि कल्प क्षेत्र पार्वती से पुराना तथा मेरा प्रिय क्षेत्र है।

उर्गम घाटी में 12 छोटे-छोटे गाँव आते हैं, जिन्हें बारह ज्यूँव उर्गम कहा जाता है। इस घाटी में एक तल्ला बड़गिठड़ा गाँव है, जहाँ अनुसूचित जाति के 115 परिवार निवास करते हैं। इसी गाँव के बीच में विश्वकर्मा मंदिर स्थित है, जहाँ तीन दिवसीय विश्वकर्मा जागर का आयोजन 8 जनवरी से 10 जनवरी 2012 हुआ। लोक मान्यता है कि विश्वकर्मा की पूजा न करने पर बड़ी तबाही होती है। इस देवता को लोग जलवायु नियंत्रक मानते है। गाँव की खुशहाली के लिये देवता का जागरण किया जाता है। पुराणों की कथा है कि एक बार देवताओं और विश्वकर्मा के बीच कपिला गाय का मांस खाने पर तकरार हो गया और विश्वकर्मा ने पूरे ब्रह्मांड में तोड़-फोड़ शुरू की। तब देवताओं ने विश्वकर्मा से कहा कि हम तुम्हारी पूरी सेवा करेंगे और समय पर तुम्हारे कार्य करेंगे। इस विनय पर विश्वकर्मा का गुस्सा शान्त हुआ। तब से वास्तु शिल्प का कार्य शुरू होने से पहले विश्वकर्मा की पूजा की जाती है।
विश्वकर्मा मंदिर के अंदर मोर, हिरन, बाघ, चीता के अलावा कीचक, विष्णु महा पंचायत के चित्र उकेरे जाते हैं। विश्वकर्मा जागर आयोजन में सभी लोग भाग लेते हैं। विश्वकर्मा के मंदिर के विश्वकर्मा को एक ‘मवाड़’ अर्थात विशेष कपड़े पर चित्र के माध्यम से चित्रकारी कर मेले के स्थान पर रखा जाता है। 8 जनवरी 2012 से प्रातः अमृत बेला पर उर्गम घाटी के श्री घण्टाकर्ण मंदिर से विश्वकर्मा का भंडार विश्वकर्मा मंदिर ले जाया गया। उर्गम घण्टाकर्ण के कटार तथा छड़ी सहित अन्य मुख्य चिन्ह यहाँ लाये गये। 10 जनवरी को पूरे चार प्रहर की पूजा अर्चना हुई और दक्षिण दिशा से आये 9 झालों के साथ युद्ध हुआ। परम्परागत रूप से चैपला, झुमेला, दाकुड़ी लगाने के अलावा देवता का भंडार लगाया गया। 10 जनवरी को सूर्यास्त से पूर्व गरुड़ छाड़ (गरुड़ वाल) भी छोड़ा गया, ताकि विष्णु जी गरुड़ में बैठकर मेला स्थल पर आ सकें।
लेखक : लक्ष्मण सिंह नेगी , साभार : नैनीताल समाचार 



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